ज्ञानी के पास जो कुछ है उससे वह खुश है तथा जो कुछ नहीं है उससे भी वह प्रसन्न है। मूर्ख के पास जो भी है उससे वह नाखुश है और जो कुछ नहीं है उसके लिए अप्रसन्न। कोई व्यक्ति हमें दुख नहीं देता न ही जीवन में कोई वस्तु हमारे क्लेश का कारण होती है। यह तुम्हारा अपना मन है जो तुम्हे दुखी बनाता है एवं तुम्हारा खुद का मन ही तुम्हे प्रसन्न और उत्साहित बनाता है। यदि तुम्हारे पास जो कुछ भी है उससे तुम पूरी तरह से तृप्त हो तब जीवन में कोई चाह नहीं होती। यह महत्वपूर्ण है कि आकांक्षाएँ हों परंतु यदि अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में तुम ज्वरग्रस्त हो वह अपने आप में एक अवरोध बन जाता है। नल की बहुत तेज़ धार के नीचे जब प्याले को रखा जाता है तो वह कभी नहीं भर सकेगा। नल के पानी को सही रफ्तार से बहाओगे तब प्याला भर पायेगा। यही होता है उन लोगों के साथ जो बहुत अधिक महत्वाकांक्षी या ज्वरग्रस्त हैं। बस संकल्प रखो " मैं यही चाह्ता हूँ"-और जाने दो।